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उड़ता यौवन

रुचिता नीमा
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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नशे के साये में देखो
छूट रहा है आज का बचपन,
सिगरेट के छल्लों में दिखता,
नजर आ रहा उड़ता यौवन।।

न संस्कार दिखते हैं, न ही
दिखता है अब बड़प्पन,
बस मोबाइल और इंटरनेट पर
बीत रहा है अब यौवन।।

हर शख्स उलझा उलझा सा,
नहीं समझता क्या है जीवन,
बस झूठे आडम्बरों में फंसकर
खो रहा है अपना यौवन।।

लगता है गुजर जाएगा
बर्बादी में अब ऐसे ही ये जीवन,
वक़्त है अब भी सम्भल जाओ,
नहीं तो उड़ जाएगा ऐसे यौवन।।

चार दिन की है जिंदगी,
निकल न जाये व्यर्थ ही जीवन,,
अपनी सँस्कृति को पहचानकर,
सवाँर लो अपना यौवन।।

परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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