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किरायेदार

डॉ. बी.के. दीक्षित
इंदौर (म.प्र.)
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कहीं कोई स्वयं में मस्त, कहीं कोई भीड़ में भी तन्हा, कहीं जीविका चलाने के लिए हाड़ तोड़ परिश्रम तो कहीं वज़न कम करने हेतु घण्टों पसीना बहाना। कोई धन अर्जित करके भी आनंदित नहीं तो कोई धन अभाव के उपरांत भी अत्याधिक प्रसन्न।
कोई अलग-अलग नस्ल के श्वान घर की रखवाली के लिए पालता है। लेकिन न चाहते हुए श्वानों की रखवाली करते-करते मजबूर सा प्रतीत होता है। कोई बिल्लियाँ पालकर स्वयं को पशु प्रेमी मान बैठता है। लेकिन अंदर से खुश नहीं हो पाता। कोई भव्य आलीशान भवन बनाकर कुछ दिन स्वयं की प्रशंसा करते हुए दिखता लेकिन अंदर से सुख धीरे-धीरे ख़त्म होने लगता। कोई किराए का शानदार बंगला लेकर बंगले के असल मालिक को मूर्ख समझता है। ऐसे लोगों का दर्शन थोड़ा अलग हटकर रहता है, ऐसे लोग कहते हैं कि दुनिया से जाना ही है तो मकान निर्माण में क्यों खपें? जीवन जी भरकर जियो, मकान बदलते रहो।
क्योंकि ज़िंदगी भी तो किराए की है। असल मालिक तो ऊपर बैठा है। स्थायी भवन बनाने में होशियारी नहीं, मकान मूर्ख बनाते हैं और किरायेदार लुत्फ़ उठाते हैं।
झोपड़ी में रहने वाले और भव्य भवनों में रहने वालों को देखकर केवल एक ही वर्ग कुढ़ता है वह वर्ग है मध्यम वर्ग। क्योंकि झोपड़ी वालों को कोई बड़ी वीमारी घेरती नहीं है और बंगलों वालों को इलाज उत्तम सुविधायुक्त अस्पतालों में मिल जाता है।
अधिकांशतः मध्यम वर्ग ही इस निराली दुनिया में लड़ते हुए दिखता है। आलेख का सार बस इतना भर है कि या तो पर्याप्त धन और सुविधाएं अर्जित कर लो या फिर निर्धन होकर जीवन को फक्कड़पन से जियो। सुखी नहीं आनंदित होने की कोशिश करो। क्योंकि ऊपर बैठा मालिक कब मकान खाली करवाने का हुक्म दे दे, किसी को नहीं मालूम। फिर चाहे देह हो या बेशक़ीमती भवन।

परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की व् आप गत ३६ वर्ष से इंदौर में निवास कर रहे हैं आप मंचीय कवि, लेखक, अधिमान्य पत्रकार और संभावना क्लब के अध्यक्ष हैं, महाप्रबंधक मार्केटिंग सोमैया ग्रुप एवं अवध समाज साहित्यक संगठन के उपाध्यक्ष भी हैं।
सम्मान – राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिंदी रक्षक २०२० सम्मान


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