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शिक्षक का आदर्श भाव

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू
बालोद (छत्तीसगढ़)
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विश्व के इतिहास में शिक्षक सदैव अमर ही रहेगा।
जब तक साँस है शिक्षा का अलख जगाते ही रहेगा।।
अंधकार भगाकर उजियारा में रहना सिखाता है

दीपक बनकर दीप प्रज्वलित कराना सिखाता है।
अपनी आभा बिखेरकर प्रतिभा को उकेरते ही रहेगा …

माता प्रथम गुरू जो अंगुली पकड़कर चलना सिखाती है,
ममता वात्सल्य लुटाकर सदा आगे बढ़ना ही सिखाती है।

मुश्किलों से लड़कर जीवन को धन्य बनाते ही रहेगा …
पिता द्वितीय गुरू जो पढ़ा लिखाकर गुणवान बनाता है,

सद्गति कर्मो से ही पैरों में खड़ा होना ही सिखाता है।
शुद्ध भाव से बच्चे माँ-बाप का फर्ज निभाते ही रहेगा …

सत्मार्ग दिखाकर एक अच्छा इंसान ही बनाता है,
अपने बल बुद्घि और विद्या से हीरा ही तराशता है।

जिंदगी को सँवारकर जीवनभर हुनर सिखाते ही रहेगा …
शिक्षक ही अध्यापक है जो स्वाध्याय ही कराता है,

अध्यापक की अमृतवाणी जीने की कला सिखाता है।
मंजिल में पहुँचाकर सफलता की राह दिखाते ही रहेगा …

तत्व ज्ञान की आलौकिक शक्ति तो गुरू ही बताता है,
गुरूओं का सत्कार करना जीवन को महान बनाता है।

श्रवण जी गुरु होकर गुर सिखाते ही रहेगा …
विश्व के इतिहास में शिक्षक सदैव अमर ही रहेगा।

परिचय :- धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू
निवासी : भानपुरी, वि.खं. – गुरूर, पोस्ट- धनेली, जिला- बालोद छत्तीसगढ़
कार्यक्षेत्र : शिक्षक
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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