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कलयुग का विनाश

मनीष कुमार सिहारे
बालोद, (छत्तीसगढ़)
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घोर दयनीय दशा देख,
मन में उठा सवाल है।
ये तांडवम महादेव का,
या कलयुग का विनाश है।।
बढ़ती महामारी है साथ,
काबुल के जंगलों में आग है।
अच्छे खासे फसल यहां,
गजदलों का प्रहार है।।
एक राष्ट्र अफगानिस्तान,
आज तालिबानों का गुलाम है।
ये कर्मफल है अपना,
या ईश्वर की मायाजाल है।
है दो देशों का झगड़ा,
या तृतीय विश्व युद्ध का कगार है।।
घोर दयनीय दशा देख,
मन में उठा सवाल है।
ये तांडवम महादेव का,
या कलयुग का विनाश है।।
सतयुग त्रेता द्वापर गए,
बचा वो बस इतिहास है।
पशु पक्षी अदृश्य हुए,
संकट में कलयुग आज है।।
बदल रहे ये प्रकृति भी ,
मौसम में भी बदलाव है।
सावन में सुखा खार,
और भादो में दरिया बाढ़ है।।
लाखों लोग मारे गए,
क्या और कब्र तैयार है।
कर वाकिफ मुझे ऐ खुदा,
क्यों इतना तू नाराज़ हैं।।
प्रेम बंधन तूझसे है,
फिर क्यों तू अपना खिलाफ है।
तू ही दाता तू विधाता,
फिर क्यों तू नाशकार है।।
घोर दयनीय दशा देख,
मन में उठा सवाल है।
ये तांडवम महादेव का,
या कलयुग का विनाश है।।
ये कैसी रचना है तेरी,
ये कैसी मायाजाल है।
लाखों लोग मारे यहां,
पर कब्र ना कब्रिस्तान है।।
मात -पिता की ऐसी कर्मा,
लिखित ना कोई पुराण है।
हो कैसे रचनाकार तुम,
आरंभ से पहले पर्यवसान है।।
टिड्डो का प्रकोप इस धरती,
पे कल आए है।
हुआ फिर फसलों पे ताण्डव,
या महामारी का फैलाव है ।।
अचानक वो टिड्डा कहा गए
वो टिड्डा आज गुमनाम है
अब फसलों पे बाईल धरे
पर बाईल पे ना दूध आय है
घोर दयनीय दशा देख,
मन में उठा सवाल है।
ये तांडवम महादेव का,
या कलयुग का विनाश है।।

परिचय :-  मनीष कुमार सिहारे
पिता : श्री झग्गर सिंह
निवासी : पटेली, जिला बालोद, (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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