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जयदयालजी गोयन्दका

शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया (असम)
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देवपुरुष जीवन गाथा से,
प्रेरित जग को करना है,
संतों की अमृत वाणी को,
अंतर्मन में भरना है।
है सौभाग्य मेरा कुछ लिखकर,
कार्य करूँ जन हितकारी,
शत-शत नमन आपको मेरा,
राह दिखायी सुखकारी।१।

संत सनातन पूज्य सेठजी,
जयदयालजी गोयन्दका,
मानव जीवन के हितकारी,
एक अलौकिक सा मनका।
रूप चतुर्भुज प्रभु विष्णु का,
राम आचरण अपनाये,
उपदेशों को श्री माधव के,
जन-जन तक वो पहुँचाये।२।

संवत शत उन्नीस बयालिस,
ज्येष्ठ कृष्ण षष्ठी पावन,
चूरू राजस्थान प्रान्त में,
जन्मे ये भू सरसावन।।
माता जिनकी श्यो बाई थी,
पिता खूबचँद गोयन्दका,
संत अवतरण सुख की बेला,
धरती पर दिन खुशियों का।३।

दिव्य रूप बालक का सुंदर,
मुखमण्डल तेजस्वी था,
पाँव दिखे पलना में सुत के,
लगता वो ओजस्वी था।।
आध्यात्मिक भावों का बालक,
दया,प्रेम,सद्भाव लिये,
जयदयालजी ने आजीवन,
जन मानस कल्याण किये।४।

पहले करनी फिर कथनी ही,
मूलमंत्र जीवन का था,
सत्य,अहिंसा,दूरदर्शिता,
समता भाव समाहित था।
गीता,रामायण,पुराण सब,
बचपन में पढ़ डाले थे,
राह पकड़कर गीता की तब,
गूढ़ सभी खंगाले थे।५।

कार्यक्षेत्र बाँकुड़ कलकत्ता,
वैश्य वर्ण निष्कामी थे,
तन,मन,धन पर सेवा खातिर,
श्री माधव अनुगामी थे।
धोती,चादर और चौबन्दी,
केशरिया पगड़ी पहने,
परम प्रचारक प्रभु वाणी के,
गीतामय धारे गहने।६।

दिव्य प्रेम का अनुभव करके,
तत्व आपने जो जाना,
जनम-मरण के दुख हरने का,
साधन उसको ही माना।
सहज मार्ग भगवत्प्राप्ति का,
ढूँढन की मन में धारी,
चाहे कोई भी हो अवस्था,
है हर मानव अधिकारी।७।

परिचय :- शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’ (विद्यावाचस्पति)
जन्मदिन एवं जन्मस्थान : २६ नवम्बर १९६९, सुजानगढ़ (राजस्थान)
निवासी : तिनसुकिया (असम)
प्रकाशित पुस्तकें : एकल ५ कविता संग्रह- “दर्पण”, “साहित्य मेध”, “मन की बात”, “काव्य शुचिता”, तथा “काव्य मेध” अन्य रचनाएँ देश की सम्मानित वेब पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिंदी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं। हिंदी साहित्य की पारंपरिक छंदों में विशेष रुचि और मात्रिक एवं वर्णिक लगभग सभी प्रचलित छंदों में काव्य सृजन में सतत संलग्न।)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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